शिक्षा के नाम पर अधिकारी कर रहे भ्रष्टाचार स्कूल से ले रहे लाखों रुपए
स्कूल न होकर बन गया है पैसे वालों का अखाड़ा, राजनीति करने वाले जनप्रतिनिधियों का मौन
स्कूलों का तो कोई माई -बाप ही नहीं, बल्की शिक्षा अधिकारियों के साथ कर रहे मनमानी
शिक्षा का हो गया व्यवसायीकरण, धन्नासेठों ने बड़े-बड़े स्कूल खोलकर लूट का लाइसेंस ले लिया
निजी स्कूलों में फीस के नाम पर मचा रखी है लूट, व्यापारियों को बना डाले दलाल ड्रेस से लेकर कापी -पुस्तक में भारी कमाई
👉🏻 अगले एपिसोड में कौन सा स्कूल कौन नेता किस दुकान में किताब एड्रेस के दलाल*
शिक्षा माफियाओं के ऐसे कारनामे सिर्फ अमरवाड़ा तहसील में ही नहीं बल्कि संपूर्ण जिले में मुख्यालय सहित देखे जाते हैं जिनकी समय-समय पर शिकायत भी होती है प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से आवाज भी उठाई जाती है राजस्व की टीम और शिक्षा विभाग की कार्यवाही भी करती है माफिया दुकानदारों पर शिकंजा कुछ और कुछ पल का होता है और अगले ही कुछ पल से लूटपाट की है रासलीला फिर से बदस्तूर यही कहानी दोहराई जाती है यह सिर्फ अमरवाड़ा की ही समस्या नहीं बल्कि संपूर्ण जिले की समस्या चिंतन तो करना होगा
अमरवाड़ा– शिक्षा को गुणवत्ता पूर्ण बनाने के लिए सरकार ने नई शिक्षा नीति बनाई है जिसमें सरकारी और निजी स्कूलों में होने वाली पढ़ाई में कोताही नहीं बरती जा सके। नई शिक्षा सत्र का आरंभ हो चुका है शासन ने सर्व शिक्षा अभियान को बहुत ही गंभीरता से लागू कर अच्छे से जनता के लिए सुविधाओं को प्रचार प्रसार कर नई शिक्षा सत्र का शुभारंभ किया था, लेकिन अधिकांश शासकीय शाला के प्रिंसिपलों की लूट की पोल खुल रही है और स्कूल संचालक के चुंगल में फंस कर बेवजह पालकों को परेशान कर रहे हैं ।
एडमिशन या एग्रीमेंट
महंगाई के इस दौर में जहां मां-बाप को स्कूल यूनिफॉर्म, कॉपी किताब और सिलेबस पर उलझ कर कमर तोड़ महंगाई का सामना कर रहे है स्कूल में एडमिशन लेना होगा तो हमारी बताई गाइडलाइन पर चलना होगा ड्रेस किताब इत्यादि सामग्री हमारे दिए स्थान से प्राप्त वहीं मनमाने ढंग से महंगाई का बहुत बड़ा असर स्कूली शिक्षा में पड़ा है। फीस के नाम पर पालकों से मनमाने वसूली हो रही है। फीस में पिछले 5 सालो में 30 से 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ है उसमें से एडमिशन के लिए स्कूलों की मनमानी चल रही है। हद तो तब हो जाती है जब स्कूल में भी एडमिशन करने के लिए बहाने बताकर सीट नहीं है जगह खाली नहीं है का एक राग अलापा जाता है। नाडा पजामा छाप और आधे राजनीतिक और आधे सामाजिक नेता शिक्षा अधिकारी स्कूल के संचालकों पर कोई आपत्ति नहीं उठते,कोई टिप्पणी नहीं करते जिसके फल स्वरुप शिक्षा के व्यवसायीकऱण में का बहुत बड़ा योगदान है मनमानी चल रही है
पालकों को लुटवाने में मददगार शिक्षा विभाग
पालक अभिभावक हलकान है। स्कूल दर स्कूल पालक भटक रहे है। कहीं पर कोई सुनवाई नहीं है और किसी प्रकार का लगाम स्कूलों पर नहीं होने के कारण स्कूल वाले काबोबारी की तरह नफा नुकसान के गुणाभाग में शिक्षण संस्थान मनमानी पर उतर गए हैं और जनता को अनाप-शनाप पैसों के लूट रहे हैं। सभी प्राइवेट स्कूलों में एक तरह का गिरोह सक्रिय होकर संगठित तौर पर स्कूल मैनेजमेंट आम जनता को एडमिशन के नाम पर खुलेआम लूट रहे हैं। किसी का दबाव नहीं होने के कारण बेवजह पैसा वसूला जा रहा है। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी और दादागिरी का यह आलम है सीधा पालकों को जवाब दिया जाता है जगह नहीं है सीट नहीं है और थोड़ी सी बात बढऩे पर आपके बच्चे का एडमिशन नहीं होगा। अब पालक करे तो क्या करें चिंता नहीं चिंतन करे।